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व्यक्ति के दो रुप (क्हानी)
किसी स्थान पर एक महान चित्रकार रहता था।
एक बार उसने बाल कन्नहिया का चित्र बनाना चाहा।
उसने अनेकोँ चित्र बनाए पर उसे एक भी पसंद नहीँ आया।
वह उदास रहने लगा। पंरतु एक दिन रास्ते मेँ चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर, मासूम, भोला, तैजस्वी, मनमोहक, बालक देखा।
उसके देखते ही उसके मन मे क्रष्ण की वह छवी उत्पन्न हुई जिसकी उसे तलाश थी।
उसने उस बच्चे को सामने बैठा कर उसका चित्र बनाया।
चित्र बहुत सन्दर बना और लोगोँ को पसंद भी आया।
समय के साथ-साथ वह चित्र प्रसिद्ध भी हुआ।
कई वर्षोँ बाद...
उस चित्रकार ने एक कंश का चित्र बनाने की सोची।
उसने कंश के अनेकोँ चित्र बनाए पर उसे एक भी पसंद नहिँ आया।
वह उदास और निराश रहने लगा।
एक दिन वो जेल के पास से गुजर रहा था।...
तब उसने देखा कि एक डाकू को दो सिपाही ले जा रहेँ हैँ।
वह डाकू एक दम उसकी कल्पना से मिलता था।
उसने सिपाहियोँ से अनुमती लेकर उस डाकू का चित्र बनाने लगा।
जब चित्रकार चित्र बना रहा था तो डाकू...
एक दम से जोर के हँसने लगा।
चित्रकार ने ङाकू से उसके हँसने का कारण पूछा।
तो डाकू ने कहा कि कुछ वर्षोँ पहले उसने एक बाल किरष्ण का चित्र बनाया था।
डाकू चित्रकार को याद दिलाया और सारी बातेँ बताई।
चित्रकार ने आश्चार्य से डाकू से पुछा कि तुम ये सब कैसे जानते हो?
डाकू ने कहा कि मैँ वहीँ बालक हूँ जिसका तुमने बाल किरश्न का चित्र बनाया था।
चित्रकार स्तम्भ रह गया...॥The End॥
Moral: जो छवी हम किसी व्यक्ति के प्रति बनाते है यह सत्य नहीँ की वह व्यक्ति वास्तव मेँ उसी छवी का हो।
एक ही व्यक्ति मेँ दो रुप हो सकते है।
Writer: Ashish Ghorela
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Mst h yro accha lga.....