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परीक्षा का दूसरा नाम है त्याग
हमने एक बात सुनी है कि सबसे भयंकर क्या है? जिससे भगवान भी डरता है। वह है परीक्षा। इस तीन अक्षरोँ से बने शब्द से आज तक तीनोँ लोकोँ मेँ कोई नहीँ बच पाया है।
पशु, पानी, जानवर, मनुष्य, राक्षस और भगवान भी!
हम जन्म से लेकर मुरत्यु तक हम परिक्षाएँ देते रहते है,
और इसमे उत्तरिण होना बहुत कठिन होता है।
कई बार तो जान की बाजी भी लग जाती है।
मैँ अपनी इस बात को कहनी द्वारा व्यक्त करने जा रहा हूँ...
किसी समय की बात है कि एक जँगल के राजा की Death हो जाती है।
जगँल के सभी जीवोँ की जुबान पर एक ही सबाल था कि अब राजा कौन बनेगा?
कौन उनकी रक्षा करेगा?
इस विषय पर सभा बुलाई गई।
सभी का मत था कि अब राजा शेर को बनाया जाए।
क्योकिँ वह सबकी रक्षा कर सक्ता था॥
बड़ी धूम धाम से शेर का राज्यभिषेक किया गया।
उसने प्रतिग्या ली कि वह अपनी जान से ज्यादा प्रजा का हित रखेगा।
अगली सुबह शेर नीँद से उठा और उसे भुख लगी हुई थी।
इसलिए शिकार पर निकल पड़ा।
जँगल मेँ सभी जानवर शेर को देखकर घबराए नहीँ बल्कि उसे प्रणाम किया।
तब शेर को याद आया कि अब वह राजा है और इनकी रक्षा करना उसका धर्म।
शेर बहुत कठिन परीक्षा मेँ फंस गया
एक तरफ भुख - एक तरफ धर्म।
शेर किसको चुनता हैँ?
और क्या परिणाम निकलता है?
आगे कि STORY पढेँ अगले रविवार 20 मई को।
तब तक के लिए हमेँ देँ इजाज्त!
आपका अपना लेखक-
आशीष घोडेला॥
शेर बुरी तरह से फँस गया
धर्म या भूख
उसने अपना कर्तव्य का पालन करना उचित समझा
लेकिन शेर घास भी नहीँ खा सकता
इसलिए भूखा रहने लगा
कुछ दिनोँ मेँ वह दुबला पतला हो गया
यह बात पुरे जँगल मेँ आग की तरह फैल गई
अब जनता की परक्षा हुई कि वो अपनी जान बचाएँ या राजा की
फिर भी सब अपनी जान की परबाह किये बगैर राजा का भोजन बनने को तैयार हो गये
और सभी राजा के पास आये
यह सब देखकर शेर फिर से बहुत बडी दुबिधा मेँ फंस गया
तभी मंत्री भालू आया
उसने कहा हे राजन इस संसार मेँ कौन परीक्षा से बच पाया है
और तो और भगवान स्वयँ भी नहीँ बच पाए
उदाहरण के लिए श्रीराम जी को ही लीजिए
जिन्होने अपने जीवन मेँ बहुत परीक्षाएं दी
हर कदम पर उन्हेँ परीक्षा और त्यागोँ का सामना किया
14 वर्ष का वनवास सीता परित्याग
श्रीकिरश्न जी ने यशोदा माता का प्यार ग्वालो का साथ नन्द बाबा और राधा का प्रेम को छोड कर मथुरा जाना पडा और तो और
इतने मेँ शेर ने बात को बीच मेँ ही काटकर कहा रूको
मैँ सब कुछ समझ गया
अब मैँ भूखा नहीँ रहूँगा
उसने सबकी और बड़े प्यार से देखा
और मुस्कुरा कर
अपने पजेँ को अपने पेट मेँ गोद लिया
शरीर लहूलूहान हो गया
तड़फते हुए दिल से यही
आवाज निकली परीक्षा का दूसरा नाम त्याग है
कर्त्तव्य पालन मेँ अनेकोँ परीक्षाएँ देनी पड़ती है
अनेकोँ त्याग करने पड़ते हैँ
यहीँ अपनी बात खत्म कर शेर स्वर्ग सिधार गया
आशीष घोडेला
Writer: Ashish Ghorela
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